उत्तर प्रदेश के मंत्री संजय निषाद की नाराजगी की वजह सामने आई है। सूत्रों के मुताबिक निषाद को लग रहा है कि गठबंधन में उनको महत्व नहीं दिया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों हलचल तेज़ है। निषाद पार्टी के मुखिया और राज्य सरकार में मंत्री संजय निषाद की नाराजगी ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। सूत्रों के मुताबिक संजय निषाद को लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ गठबंधन में उनकी पार्टी और उनके समुदाय को वह महत्व नहीं मिल रहा जिसकी उम्मीद की गई थी। यही कारण है कि उनकी नाराजगी अब सार्वजनिक तौर पर दिखने लगी है।

नाराजगी की पृष्ठभूमि
संजय निषाद लंबे समय से निषाद समाज के बड़े नेता माने जाते हैं। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में निषाद पार्टी ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन का मकसद था कि पूर्वांचल और गोरखपुर क्षेत्र में निषाद वोट बैंक को मज़बूत किया जा सके। शुरुआती दौर में यह रणनीति सफल भी रही और निषाद समाज का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ खड़ा दिखाई दिया।
लेकिन अब संजय निषाद को लग रहा है कि बीजेपी सरकार में उनकी पार्टी को अपेक्षित सम्मान और जिम्मेदारी नहीं दी जा रही है। मंत्री होने के बावजूद वे महसूस कर रहे हैं कि उनकी बातों और मांगों पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जाता।
सूत्रों के हवाले से नाराजगी की वजह
सूत्रों के अनुसार संजय निषाद की नाराजगी की मुख्य वजहें तीन हैं:
- गठबंधन में महत्व की कमी – संजय निषाद को लगता है कि बीजेपी उन्हें सिर्फ वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल कर रही है, लेकिन नीतिगत फैसलों और राजनीतिक चर्चाओं में उन्हें शामिल नहीं किया जाता।
- पार्टी संगठन की अनदेखी – निषाद पार्टी को संगठनात्मक स्तर पर मजबूती देने के लिए जो वादे किए गए थे, वे अब तक पूरे नहीं हुए। ज़िला और ब्लॉक स्तर पर कार्यकर्ताओं को पर्याप्त जगह नहीं मिल रही है।
- समुदाय की मांगें अधूरी – निषाद समाज लंबे समय से अनुसूचित जाति (SC) वर्ग में आरक्षण की मांग कर रहा है। संजय निषाद का आरोप है कि इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया गया और केवल आश्वासन देकर मामला टाल दिया गया।
सार्वजनिक नाराजगी

हाल ही में संजय निषाद ने कुछ सार्वजनिक मंचों से भी अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि निषाद समाज ने बीजेपी को पूरा समर्थन दिया, लेकिन उनके समाज को वह हक नहीं मिला जिसके लिए वे लगातार संघर्ष कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर गठबंधन में बराबरी का महत्व नहीं दिया जाएगा तो कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटेगा।
बीजेपी की प्रतिक्रिया
हालांकि बीजेपी की ओर से अभी तक इस नाराजगी पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। पार्टी के अंदरखाने यह माना जा रहा है कि संजय निषाद की नाराजगी को जल्द दूर करने की कोशिश की जाएगी, क्योंकि चुनावी राजनीति में निषाद वोट बैंक को नज़रअंदाज़ करना बीजेपी के लिए जोखिम भरा हो सकता है।
राजनीतिक महत्व
संजय निषाद की नाराजगी केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि राजनीतिक महत्व भी रखती है। पूर्वांचल के कई जिलों में निषाद समाज की संख्या निर्णायक है। अगर यह वोट बैंक बीजेपी से दूर होता है तो विपक्ष इसका फायदा उठाने में देर नहीं करेगा। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पहले ही इस मुद्दे पर सक्रिय हो सकती हैं।
गठबंधन पर असर
संजय निषाद की नाराजगी अगर जल्द दूर नहीं की गई तो इसका असर 2027 के विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है। छोटे दलों के साथ गठबंधन बीजेपी की रणनीति का अहम हिस्सा रहा है। ऐसे में किसी भी सहयोगी दल की नाराजगी को हल्के में लेना पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
निष्कर्ष
संजय निषाद की नाराजगी यह साफ दिखाती है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में गठबंधन केवल वोटों की गणित तक सीमित नहीं है, बल्कि सहयोगी दलों को बराबरी का महत्व देना भी उतना ही जरूरी है। अगर बीजेपी समय रहते उनकी नाराजगी को दूर नहीं करती तो यह राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव ला सकता है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी नेतृत्व किस तरह इस नाराजगी को शांत करने की कोशिश करते हैं।
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