दिल्ली सरकार ने डिजिटल क्लासरूम पहल के लिए 900 करोड़ रुपये से अधिक की मंजूरी दे दी है। इसके तहत 18,996 स्मार्ट ब्लैकबोर्ड लगाए जाएंगे।
दिल्ली सरकार ने राजधानी में स्कूली शिक्षा को तकनीकी रूप से उन्नत और भविष्य के अनुरूप बनाने के लिए एक अहम कदम उठाया है। इसके तहत सरकार ने डिजिटल क्लासरूम पहल पर 900 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने का निर्णय लिया है। यह पहल सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता को बेहतर बनाने, बच्चों की सीखने की प्रक्रिया को अधिक इंटरएक्टिव बनाने और शिक्षकों को आधुनिक टूल्स से सुसज्जित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल मानी जा रही है।

शिक्षा में तकनीकी बदलाव की शुरुआत
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और शिक्षा मंत्री आतिशी मार्लेना ने संयुक्त रूप से घोषणा करते हुए कहा कि राजधानी के सरकारी स्कूलों में अब पारंपरिक ब्लैकबोर्ड की जगह स्मार्ट बोर्ड, डिजिटल कंटेंट और वर्चुअल लर्निंग टूल्स लेंगे। इस परियोजना के तहत बुनियादी ढांचे को अपग्रेड किया जाएगा, जैसे कि हाई-स्पीड इंटरनेट, प्रोजेक्टर, स्मार्ट बोर्ड, टैबलेट्स और शिक्षकों के लिए डिजिटल प्रशिक्षण।
शिक्षा मंत्री आतिशी ने कहा,
“21वीं सदी के छात्रों को 20वीं सदी की पढ़ाई के तरीकों से नहीं पढ़ाया जा सकता। दिल्ली के बच्चे दुनिया की किसी भी शिक्षण व्यवस्था से पीछे नहीं रहें, इसके लिए यह निवेश जरूरी है।”
किस पर कितना खर्च होगा?
900 करोड़ रुपये की इस योजना के तहत, दिल्ली सरकार निम्नलिखित मदों पर खर्च करेगी:
- कक्षा कक्षों का डिजिटलीकरण: 20,000 से अधिक क्लासरूम्स को स्मार्ट क्लासरूम में बदला जाएगा।
- डिजिटल उपकरणों की खरीद: प्रत्येक कक्षा में एक स्मार्ट बोर्ड, इंटरनेट कनेक्शन, साउंड सिस्टम और कंट्रोल यूनिट लगाई जाएगी।
- सॉफ्टवेयर और कंटेंट: शिक्षण-सामग्री को एनसीईआरटी और सीबीएसई पाठ्यक्रम के अनुसार डिजिटल रूप में तैयार किया जाएगा।
- शिक्षकों का प्रशिक्षण: 70,000 से अधिक शिक्षकों को आधुनिक तकनीक और डिजिटल टूल्स पर प्रशिक्षित किया जाएगा।
- सुरक्षा और रखरखाव: उपकरणों की सुरक्षा और नियमित अनुरक्षण के लिए अलग बजट रखा गया है।
छात्रों को मिलेगा लाभ
यह डिजिटल क्लासरूम पहल न सिर्फ पढ़ाई को रोचक बनाएगी, बल्कि विद्यार्थियों के परिणामों में भी सुधार लाने का दावा किया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, ऑडियो-विज़ुअल कंटेंट से बच्चों की समझ और याददाश्त में सुधार होता है। साथ ही, वर्चुअल प्रयोगशालाएं और सिमुलेशन जैसे टूल्स विज्ञान और गणित जैसे कठिन विषयों को भी आसान बना सकते हैं।
एक सरकारी स्कूल की प्रधानाचार्य ने कहा,
“पहले शिक्षक केवल चॉक और डस्टर से पढ़ाते थे, लेकिन अब बच्चे 3D मॉडल और वीडियो के ज़रिए जटिल विषयों को भी आसानी से समझ पा रहे हैं। यह बदलाव हमारे पूरे शिक्षा तंत्र को नया आयाम देगा।”
विपक्ष की प्रतिक्रिया
हालांकि इस पहल की सराहना हो रही है, लेकिन विपक्ष ने इसे लेकर कुछ सवाल भी उठाए हैं। भाजपा नेताओं का कहना है कि दिल्ली सरकार पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रही है, ऐसे में 900 करोड़ रुपये का खर्च चुनावी लाभ के लिए किया जा रहा है। उन्होंने यह भी पूछा कि क्या पूर्व में शुरू की गई स्मार्ट क्लास परियोजनाएं पूरी तरह सफल रही हैं?
वहीं सरकार ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा है कि यह खर्च शिक्षा के क्षेत्र में निवेश है, ना कि व्यय। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा,
“अगर हमें देश को विश्वगुरु बनाना है, तो हमें अपने बच्चों की शिक्षा में निवेश करना ही होगा।”
निष्कर्ष
दिल्ली सरकार की यह डिजिटल क्लासरूम योजना केवल एक तकनीकी परिवर्तन नहीं, बल्कि शिक्षा की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव की ओर इशारा करती है। यदि यह योजना सफल होती है, तो यह मॉडल अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बन सकता है।
भविष्य में तकनीक-संलग्न शिक्षा ही विकास का आधार होगी, और दिल्ली सरकार इस दिशा में एक बड़ा कदम उठा चुकी है।
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